ज्योतिष – एक विज्ञान

Astrology - A science

जैसा की हम सब जानते हैं आज के समय में मनुष्य जीवन तरह-तरह के प्रपंचों, दुखो, रोगों आदि से प्रभावित हैं एसे में वह कुछ समय सुख के बिताना चाहता हैं क्योंकि जैसे ही संसार में बच्चे का जन्म होता हैं तब से और मृत्यु तक हर तरह की समस्या, सुख-दुख, रोगों आदि का जीवन भर संबंध रहता है।

हमारा समय कभी अच्छा तो कभी बुरा गुजरता है और यह सब ग्रहों की चाल के कारण होता है किसी के ग्रह बुलंदियों की ओर ले जाते है तो किसी के सदेव गर्दिश में रहते है और इन्ही ग्रहों को हम सितारे भी कहते है। जीवन में प्रत्येक घटने वाली अच्छी – बुरी घटनाएँ, रोग, सुख – दुख, हानि-लाभ, संबंधो का बनना बिगड़ना ये सब केवल हमारे पिछले जन्मो या इसी जन्म में संचित कर्मो का फल होता है और कितने जन्मो तक का होता है यह भी किसी को नही पता, परंतु यदि समस्याएं है तो उसका समाधान भी है इसलिए मनुष्य के बारे में जानने – समझने के लिए ज्योतिष का जन्म हुआ जिससे प्रत्येक समस्या जा समाधान किया जा सके।

सृष्टी की रचना के साथ ही ज्योतिष का जन्म हुआ। सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, बुध, गुरु, शनि, शुक्र आदि जितने भी ग्रह है ये सब देवता है और ब्रह्मांड में ही इनका वास है। इन्हें पूर्वज भी कहा जाता है जैसे भगवान श्रीराम और कृष्ण। इन दोनों को सूर्य वंश एवं चन्द्र वंश अवतार के कारण ही सूर्य – चन्द्र वंश का नाम ही आज सार्थक है।

ब्रह्मा जी के पुत्र मनु ने अपनी मनु स्मृति में वर्णित चार वर्ण (ब्रह्मा, क्षत्रिय, वैश्य एंव शुद्र) आदि की संरचना की । चार युगों (त्रेता, सतियुग, द्वापर एवं कलियुग) का निर्माण उनकी अलग अलग आयु एवं समय द्वारा किया गया। मनुष्य, जीव, जन्तु, वृक्ष, जल, समुन्द्र, अग्नि, वायु, आकाश यह सभी प्रकृति का अंग है और इन्ही सब के विषय में ही जानने समझने के लिए ही ज्योतिष का निर्माण हुआ जिसे आज वैज्ञानिक एक अनोखा विज्ञान मान चुके हैं।

ज्योतिष क्या है? इसका जन्म कैसे हुआ ?
ज्योतिष शब्द की यदि हम संधि करें तो ज्योतिष + ईश अर्थात ज्योति यानि प्रकाश और ईश का मतलब स्वामी । मतलब प्रकाश का स्वामी । यह हम सभी जानते है कि प्रकाश का देवता सूर्य है जिससे पूरी प्रकृति, ब्रह्मांड प्रकाशवान है ज्योति शब्द से ही पता चलता है कि अंधकार से प्रकाश की ओर आना । सही मार्ग बतलाना । इस संसार में जब भी कोई मनुष्य जन्म लेता है तो वह अपने भूत – भविष्य एवं वर्तमान के बारे में जानना चाहता है । इस ज्योतिष के ज्ञान को समझने के लिए दिव्य ज्ञान की आवश्यकता होती है. यह दिव्य ज्ञान हमारे ऋषि – मुनियों के पास में था जिसके द्वारा वे तीनो कालो (भूत – भविष्य एवं वर्तमान) को जानकर समझकर उसी रूप में कार्य करते थे।

ब्रह्मांड की संरचना के साथ ही ज्योतिष की उत्पत्ति हुई क्योकि सूर्य से ही पूरा ब्रह्मांड संचालित है सभी ग्रहों के पास इसका प्रकाश पहुचता है, जो ग्रह सूर्य के जितने नजदीक होगा उसे उतना ही तेज प्रकाश मिलेगा और जो ग्रह सूर्य से दूर होगा उसे कम प्रकाश मिलेगा परंतु सूर्य का अपना एक तेज है बाकी ग्रहों की तुलना में सूर्य का प्रकाश तीव्र है जिसके कारण पास वाले ग्रहों का प्रकाश लुप्त हो जाता है या खो जाता है। इसी को ज्योतिष में हम ग्रहों का अस्त होना या उदय होना कहते है एवं इसी के अनुरूप हमारा जीवन प्रभावित होता है।

प्रकाश की गति को आज के वैज्ञानिक भी मानते है क्योकि प्रकाश की गति को पुरे वर्ष मापने की इकाई को ही प्रकाश वर्ष कहते हैं इसकी गति एक सेकंड में १ लाख ८६ हज़ार ३०० मील होती जिसका प्रभाव हमारे जीवन में मन पर पड़ता है और इसी के कारण हमारा मन परिवर्तित होता रहता है ।

राशियों के प्रकार एवं नक्षत्र
राशियों के विषय में जानने से पहले हमे सृष्टि के क्रम और युग के विषय में जानना आवश्यक है क्योंकि सृष्टी की रचना से पहले हम राशियों की जानकारी नही ले सकते । हमारे देश भारत में शुरू से ही वेदों के अनुसार समय को मापने की पद्धति प्राचीन काल से ही सुक्ष्म रही है, अभी तक कोई भी धर्म या विज्ञानं बिना किसी आधार के सृष्टी की उत्पत्ति कब हुई , नही बता सकता ? हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी योग – साधना के माध्यम से इस बात को जाना कि हमारी सृष्टी को चार युगों में बांटा गया है जैसे – कलियुग (४,३२,०००), द्वापर (८,६४,०००), त्रेता (१३,९६०००) तथा सतियुग (१७,२८,०००) इनकी आयु है यदि इन सबका जोड़ किया जाए तो इन चारो युगों की आयु (४३,२०,०००) वर्ष होती है जिसे एक महायुग बोला जाता है । इसी तरह एक हजार महायुगो का एक कल्प या ब्रह्मा का एक दिन कहलाता है। ब्रह्मा जी की रात को प्रलयकाल कहा जाता है । इसके अलावा विष्णु जी के भी युग की अवधि है जो ब्रह्माजी के एक हज़ार महायुग विष्णु जी के एक घड़ी के बराबर होते है। इससे आगे गणना करने में मस्तिष्क शून्य हो जाता है, इसलिये आगे की क्रियाओं को भगवान के शरण में अर्पण कर देना चाहिए।

हमारे सौरमंडल में सूर्य के चारो ओर ग्रह भ्रमण करते है हर ग्रह अपनी एक निश्चित राशियों पर भ्रमण करते है और ये राशियाँ सूर्य के चारो ओर परिक्रमा मार्ग में ३०-३० अंश पर विभाजित होती है तथा पूरा परिक्रमा मार्ग ३६० अंश का होता है। यह राशियाँ तारो – नक्षत्रो का झुंड होती है, इन सभी राशियों के नाम इनके आकार पर दिए गए है जिन्हें दूरबीन की सहायता से देख सकते है। हमारे सौर – मंडल का परिक्रमा मार्ग १२ भागो में विभाजित है जिन्हें हम राशी – मंडल कहते है।

यही परिक्रमा मार्ग २७ हिस्सों में विभाजित है जिन्हें हम नक्षत्र– मंडल के नाम से जानते हैं। एक नक्षत्र १३ अंश २० कला का होता है। जब ग्रह इन राशियों और नक्षत्रो पर भ्रमण करते है तो इनका संबंध हमारे शरीर के साथ होता है।