यह मूल प्रश्न है कि इस दुनिया मे भगवान की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता है और जो इस संसार मे हो रहा है वह सब भगवान की इच्छा से ही हो रहा तो इंसान पाप का भागी क्यो ? यह बात सत्य है कि हम अपने पूर्व कर्मो का फल भोगते है । जैसा कि मैं अपनी पहली पोस्ट मे बता चुका हूँ ।
जैसा हम कर्म करते है वो अगले जन्म मे भाग्य बनता है और जो भाग्य बनता है उसके आधार पर हम वर्तमान जन्म भोगते है । यह चक्र चलता रहता है । अब बात यह आती है कि हमारे जीवन की स्वतन्त्रता कहा है इस चक्र मे ।
हमारे मनुष्य जीवन को भगवान ने विवेक दिया है जो 84 लाख योनियो को नहीं दिया है वो अपने कर्म के खेल से बंधे है लेकिन मनुष्य का विवेक भाग्य और कर्म से बंधा है । मनुष्य विवेकी होने के कारण अपने विवेक से कर्म और भाग्य का विश्लेषण करने पर मजबूर होता है । जो मनुष्य तमोगुणी आत्मा के वशीभूत होता है उसको कर्म और भाग्य का बोध नहीं होता है वो कर्मेन्द्रि के वशीभूत होकर पाप कर्म करता रहता है । तथा नास्तिक स्वभाव के वशीभूत रहता है ।
और जो मनुष्य रजोगुणी आत्मा के वशीभूत होता है उसको विवेक होने के बाद भी वो कर्म , तृष्णा और वासना के अधीन हो जाता है । और जो मनुष्य सतोगुणी आत्मा के आधीन होता है उसको पूर्ण विवेक होता है । वह मनुष्य समझता है कि भगवान की कुछ खास क्रपा उसके उपर है ।
जब सतोगुणी मनुष्य को आभास हो जाता है कि भगवान की असीम क्रपा उसके उपर है तो वो अपने पूर्व संचित पाप कर्मो को पुण्य मे बदलने की कोशिस करता है । इसलिए जो हो रहा है वो भगवान की मर्जी से हो रहा है । लेकिन मनुष्य विवेकी होने के कारण अपने पाप या पुण्य कर्मो के फल का एहसास करता रहता है । ऐसा मनुष्य विवेक से कर्म का फल जानकार पाप नहीं करता है ।
इसलिए मनुष्य का जीवन हमेशा एक जैसा नहीं रहता है भगवान मनुष्य के ग्रहों की चाल बदलता रहता है । जिसे हम ज्योतिष कहते है । जब अच्छे ग्रहों की चाल आती है तो मनुष्य को अपने पाप कर्मो को पुण्य मे बदलने का मोका मिलता है । इसलिए भाग्य और कर्म का ड्राईवर स्वयं मनुष्य ही होता है । भगवान तो सिर्फ आपके गाड़ी रूपी शरीर का निर्माण करते है । इस शरीर से अच्छे कर्म करने का अधिकार भगवान ने आपको दिया है ।
इसलिए यह कभी न सोचे कि बुरा हुआ तो भगवान की मर्जी से हुआ है और अच्छा हुआ तो आपकी मेहनत और कर्म का फल है ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतिषविद् एवम् वास्तु एक्सपर्ट )