आत्मा इस प्रकृति विज्ञान के परमाणु बाद की सबसे सूक्ष्म इकाई है । आत्मा का आकार एक बाल के गोल हिस्से के 60 भाग किए जाये । उसके बाद उसके एक भाग के 99 भाग किया जाये । उसके बाद उसके एक भाग के 60 भाग किये जाये तो एक भाग के बराबर आत्मा का सूक्ष्म आकार होता है । या हम यह कह सकते है कि आत्मा का आकार एक बाल के गोल हिस्से का 3 करोड़ 52 लाख 83 हजार 600 सो वां भाग होता है ।
शरीर त्यागने बाद आत्मा सबसे पहले अंतिरिक्ष मे जाता है । अन्तरिक्ष मे इंद्र नाम की वायु ( सोनतती वायु , किरणपती वायु , सोममाम वायु ) मे रमण करता है । उसके बाद यम नाम की वायु ( सुभय वायु , रेधी वायु , घिरन्तति ) मे रमण करता है । इन 6 प्रकार की वायु मे रमण करने के बाद आत्मा पिछले जन्म के कर्म की स्मृति को समाप्त कर देती है तथा अगला जन्म लेती है । यम नाम वायु मे आत्मा और वायु का मंथन होता है । उस मंथन के बाद यह तय होता है कि आत्मा को पुनर्जन्म के लिए कौन से गुण सत ,रज ,तम मे प्रवेश करना है ।
इसके बाद जैसे मनुष्य के कर्म होते है वैसा ही चित होता है और जैसा चित होता है वैसी ही आत्मा का शरीर मे पुनरप्रवेश या पुनर्जन्म होता है । अगर मनुष्य के कर्म सात्विक है तो आत्मा सतोगुणी रूप मे जन्म लेती है । अगर मनुष्य के कर्म तामिस है तो आत्मा तमोगुणी रूप मे जन्म लेती है ।
ज्योतिषीय आधार पर सतोगुणी आत्मा गोचर मे अच्छे ग्रह आने का इंतजार करती है और जब ब्रह्मांड मे अच्छे ग्रह आ जाते है तो आत्मा गर्भ मे प्रवेश कर जाती है । और जिनके पाप कर्म होते है उनकी आत्मा नीच ग्रहो मे और अस्त ग्रहो मे ही गर्भ मे प्रवेश कर जाती है ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( दार्शनिक एवं सनातन धर्म चिंतक )
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