ध्यान विषय पर छोटे से लेकर बड़े संत, महात्मा और ज्ञानी एक ही बात बोलते रहते हे कि ध्यान करो ध्यान करो सिर्फ ध्यान करो सब ठीक हो जाएगा । और भगवान मिल जाएँगे आपको मोक्ष मिल जाएगा । यह सत्य नहीं है मित्रो । ध्यान और लक्ष्य का बहुत गहरा संबंध है । लक्ष्य के बिना ध्यान आगे नहीं बढ़ सकता है । अगर बिना लक्ष्य के ध्यान मे जाओगे तो शून्य अवस्था मे चले जाओगे । और शून्य अवस्था मे जाना तो एक प्रकार से नीद मे जाना होता है ।
ध्यान से पहले आपको अपने कर्म की चेतना को निश्चित करना होता है । आपको ध्यान करते समय यह तय करना है कि ध्यान मे विचार शून्य न हो जाये तथा जो आप खोज करना चाहते है उसी दिशा मे आपका ध्यान रहे । इसलिए प्रज्ञा बुद्धि , मन और व्यान प्राण को साथ लेकर सही दिशा का निर्धारण करे । जब आप बापिस ध्यान से आओगे तो अपने साथ इस ब्रांमांड के अनुभव , प्रकृति के, और शरीर के, आत्मा के, ज्ञान के ,पाप के , पुण्य के, झूठ के और सच के अनुभव साथ लाओगे . तथा भगवान के रहश्य की जानकारी भी मिलेगी ।
ध्यान दो प्रकार का होता है । 1- स्वचालित ध्यान ( Automatic ) 2- आदेशात्मक ध्यान ( Manual)। ऑटोमैटिक ध्यान मे शरीर से जो कार्य हम करते है वो अपने आप होता रहता है । जैसे बारिश हुई कही फिसल न जाएँ शरीर अपने आप ध्यान मे चला जाता है । और शरीर के पैरों को सावधान कर देता है कि आराम से चलो नहीं तो गिरोगे । इसी प्रकार आप ज्यादा खाते है , ज्यादा दौड़ते , ज्यादा झगड़ा करते है , गाली देते है , या कोई भी कार्य करते है तो स्वचालित ध्यान आप पर नज़र रखता है । कही आप शरीर से कुछ गलत काम न कर दे जिसके कारण शरीर का नुकसान न हो जाये ।
आदेशात्मक ध्यान मे हम अपनी 5 इंद्रियों 5 प्राणो बुद्धि और सांस (मन ) को आदेश देते है । कि सभी एकाग्र होकर शांत चित होते हुये आगे बढ़ो । तथा ध्यान मे जाने से पहले कर्म की दिशा का निर्धारण करना अनिवार्य होता है । जो कर्म की दिशा आपने निर्धारित की उसी सोच को प्रज्ञा बुद्धि अपने साथ लेकर व्यान प्राण पर सवार होकर अंतिरक्ष मे रमण करने लगती है । अगर आपने अपने कर्म की दिशा त्रेता युग मे निरधारित कर दी है । और यह सोचा कि मुझे भगवान राम और रावण के युद्ध की सच्चाई जाननी है । तो आप आदेशात्मक ध्यान को आदेश करो कि मुझे त्रेता युग मे ले जाये । और ध्यान आपको उस युग मे ले जाएगा । और लाखों साल पहले हुये युद्ध की जानकारी ध्यान आपको देगा । क्योकि ध्यान को आपने अपने बस मे कर लिया है ।
पंडित यतेन्द्र शर्मा (श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81 )