अथर्ववेद का सार

अथर्ववेद चारो वेदों मे दूसरा सबसे बड़ा वेद है । इस वेद मे 20 कांड 771 सूक्त और 5977 मंत्र है । इस वेद को प्राचीन काल मे वेद नहीं माना गया था क्योकि इस वेद मे कुछ मंत्र टोने , टोटके ,जादू , इंद्रजाल , भूत प्रेत , नरक मे मरने के बाद शारीरिक यंत्रना देने का समावेश , किसी का अहित करने के लिए सीधा आक्रमण न करके जादू टोने के प्रभाव से हानी पहुंचाना , किसी के विनाश के लिए शाप फरक मंत्रो का प्रयोग , साँपो के मंत्र और भिन्न भिन्न रोगो के लिए झाड फूँक के मंत्रों का प्रयोग इस वेद मे है । इसी कारण पहले वैज्ञानिक ऋषियों ने इसे वेद न मानकर अंधविश्वास माना था ।
लेकिन बाद इन मंत्रो पर शोध किया था तथा इनके प्रभाव को सच पाया गया तो अथर्ववेद को वेद की मान्यता मिली थी । अथर्ववेद मे सभी मंत्र ऐसे नहीं है इस वेद मे कही कही तो ऋग्वेद से भी उच्च कोटी के मंत्र है । अथर्ववेद युद्ध और शांति का वेद है । शरीर मे शांति और परिवार मे शांति किस प्रकार रखी जाये उसके लिए नाना प्रकार की ओषधि और मंत्रों का विवरण है । विश्व मे शांति किस प्रकार रखी जाये उसका विवरण है । अगर कोई देश शांति भंग करता है तो उसको कैसे कुचला जाये तथा कैसे विजय प्राप्त की जाये उसका पूरा विवरण अथर्ववेद मे है ।
इसके अलावा अथर्ववेद मे ऋग्वेद की ही भांति इंद्र देवता , वरुण देवता , अग्नि देवता , विष्णु देवता , ब्रहस्पति देवता , ब्रह्मा देवता , पितर देवता , यम देवता , सूर्य देवता , सोम देवता , आदित्य देवता , रुद्र देवता , प्रजापति देवता , धाता देवता और अदिति देवता जैसे देवताओं के मंत्रो का विवरण है ।
अथर्ववेद एक सामाजिक दर्शन का भी वेद है । इस वेद मे चार वर्णो ( ब्राह्मण , क्षत्री ,वेश्व और शूद्र ) का विवरण , चार आश्रम ( ब्रह्मचर्य , ग्रहस्थ ,वानप्रस्थ और सन्यास ) का विधान्, समाज मे नारी की इज्ज़त और उसका महत्वपूर्ण स्थान , विधवा का पुनर विवाह और 16 संस्कारो का पूर्ण विवरण अथर्ववेद मे मिलता है । इसके अलावा यह वेद विज्ञानों का भंडार है । स्पर्श चिकित्षा , मनोविज्ञान चिकित्षा , विष निवारण , ज्वर नाश , सर्प विष नाश की चिकित्षा , ओषधि विज्ञान , वनस्पति विज्ञान , काम विज्ञान , प्राण विज्ञान ,धातु विज्ञान , मणि विज्ञान , कृषि विज्ञान , गो पालन की विध्या , खगोल विज्ञान , युद्ध विद्या और राज धर्म का सम्पूर्ण विवरण अथर्ववेद मे मिलता है । ये था हमारे चार वेदों का ज्ञान का भंडार जो किसी भी धर्म मे न देखने को और न पढ़ने को मिलता है ।

पंडित यतेन्द्र शर्मा, कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ ( ऐ1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही81 )