1- नाग उपप्राण –
नाग उपप्राण प्राण का उप है । जब मनुष्य को क्रोध आता है तब यह प्राण क्रोध से उत्पन्न विष को उगल देता है । तथा शरीर मे मोजूद अमृत को भस्म कर देता है । शरीर मे क्रोध नाग प्राण के कारण उत्पन्न होता है ।
2-देवदत्त उपप्राण –
यह प्राण व्यान प्राण का उप प्राण है । इस उपप्राण का संबंध लोक लोकांतरों से होता है । जब मनुष्य समाधि मे जाता है तो देवदत्त प्राण ही विभिन्न लोको से संबंध स्थापित करता है । इसका संबंध ज्ञान की धाराओं से होता है ।
3- धनंजय उपप्राण –
इस उपप्राण का संबंध उदान प्राण से होता है । उदर मे होने वाली क्रियाओं का संपर्क धन्जय उपप्राण से होता है । स्वस्थ रहने के लिए धन्जय मजबूत रहना चाहिए ।
4- कूर्म उपप्राण –
इस उपप्राण का संबंध अपान प्राण से होता है । इस उपप्रन का कार्य शरीर मे गुरुत्वाकर्षण बल को उत्पन्न करना होता है । इस बल से शरीर की एकाघ्रता होती है । जब मनुष्य म्रत्यु को प्राप्त होता है तो सबसे पहले कूर्म उपप्राण अपना कार्य छोड़ देता है ।
5- क्रकल उपप्राण –
इस उपप्राण का संबंध समान प्राण के साथ होता है । उचित मात्रा मे ऊर्जा बिटामिन और रसो की आपूर्ति यह उपप्राण करता है । साधना के लिए इस उपप्राण को मजबूत बनाना आवश्यक है ।
पंडित यतेन्द्र शर्मा कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ( बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही- 110081 )