अगर कोई भी साधक भगवान को जानना चाहता है तो उसको सबसे पहले भगवान के द्वारा दिये इस शरीर रूपी यंत्र को जानना जरूरी है । इस शरीर रूपी यंत्र मे भगवान को प्राप्त करने के मार्ग और दिशा मोजूद है । बस साधना से उन रास्ते को जानने की आवश्यकता है ।
इस शरीर मे मन , बुद्धि , प्राण और आत्मा ये चार ऐसे स्वचालित यंत्र है जो कि रेडियो तरंगो की तरह भिन्न भिन्न लोको से जुड़े रहते है । मन का संबंध प्रथवि लोक के साथ जुड़ा रहता है । बुद्धि का संबंध 136 लोको के जुड़ा रहता है । प्राण का संबंध शरीर के जुड़ा रहता है । और आत्मा का संबंध परमात्मा से जुड़ा रहता है । इन सबके के कार्य अलग अलग है । मन , बुद्धि , प्राण और आत्मा के कार्यो को साधना से समझने की आवश्यकता है ।
मन के कार्य को बुद्धि से जोड़ना है और बुद्धि के कार्य को प्राण से जोड़ना है । जब बुद्धि प्राणो मे रमण करने लगती है तो आपको शरीर रूपी यंत्र का स्वरूप समझ मे आ जाता है । जब शरीर का यह स्वरूप समझ मे आ जाता है तो बुद्धि ही आत्मा को आज्ञा देती है कि आप परमात्मा के रास्ते पर मुझे लेकर चलो और मार्ग दिखाओ । फिर आत्मा प्रज्ञा बुद्धि पर सवार होकर आत्मलोक को प्रस्थान करती है । फिर आपको उस आनंद की अनुभूति होती है जिसका आप वर्णन नहीं कर सकते है ।
इसलिए शरीर भगवान का दिया हुआ एक दिव्य यंत्र है । इसकी देख भाल आपको उसी प्रकार करनी चाहिए जिस प्रकार आप अपनी गाड़ी की सर्विस कराते रहते हो । अगर शरीर रूपी इस दिव्य यंत्र की सर्विस समय समय पर नहीं कराओगे तो यह दिव्य यंत्र बीमार पड़ जाएगा । अगर शरीर व्याधि से ग्रहथ है तो आप योग के माध्यम से भगवान को प्राप्त नहीं कर सकते है । जब शरीर ब्याधी ग्रहथ होता है तो ध्यान की प्रक्रिया बाधित होती है ।
इस भगवान के दिव्य यंत्र को शुद्ध, साफ और निरोगी रखने के लिए शुद्ध शाकाहार का सेवन करना चाहिए तथा किसी भी प्रकार के नशे का सेवन नहीं करना चाहिए ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतिषविद् एवं वास्तु एक्सपर्ट )
ए1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार नियर रोहिणी सेक्टर 22 देल्ही 110081
Website: www.balajimandirramavihar.org