मन्त्रों का वैज्ञानिक रहस्य क्या है ? क्या मन्त्रों को जपने से लाभ होता है ? मन्त्र जाप कैसे करें ?

मंत्रो का निर्माण हमारे नाभि चक्र से होता है और एक मंत्र की गति इतनी तीव्र होती है कि एक पल में मंत्र हमारी पृथ्वी के १७ बार चक्र लगा लेता है । वाणी से निकला हुआ मन्त्र अंतरिक्ष के अंतिम छोर तक जाता है । जहाँ तक इसकी सीमाए निर्धारित होती है या आप जिस उद्देश को लेकर मन्त्र कर रहे हो मंत्र उसी लोक तक ,उसी देवता तक या उसी ग्रह तक तथा उसी भगवान् तक जाता है । तथा वहाँ से ईको (प्रतिध्वनि ) के रूप में बहुत शक्तिशाली होकर आपके पास आता है । तथा आपके नाभि चक्र को बहुत शक्तिशाली बना देता है ।

मुझे पता है कि कुछ कुतर्की लोग इस बात को नहीं मानेंगे इसलिए मैं विज्ञानं का एक उदहारण दे रहा हूँ । जरा ध्यान से समझने की कोसिश करे.एक ५०० मीटर लंबे बंद हॉल में आप एक शब्द का उच्चारण करे । वह शब्द ईको होकर थोड़ी देर के बाद आपके कानो को बहुत तेज़ से आकर सुनाई देता है.। क्यों कि आपने अपने शब्द का अंतिरिक्ष सिर्फ ५०० मीटर कर लिया था । अब आप इस अंतरिक्ष रूपी हॉल को १० गुना बढ़ा कर ५ किलोमीटर कर दो । तो शब्द की गति बढ़ेगी तथा शब्द को बापिस आने में समय जरुर लगेगा लेकिन ईको होकर मंत्र आएगा जरूर ।

इसी प्रकार जब हम मन्त्र जाप करते है तो मंत्र अंतरिक्ष की सीमायों से टकरा कर या आपके इष्ट देव से टकरा कर अवश्य आपके पास आएगा । पर समय जरुर लगेगा. अब मंत्र को बार बार करने क्या से क्या लाभ मिलता है ? जब एक बार बोला हुआ मन्त्र ईको होकर आपको स्वयं को सुनने को मजबूर करता है । तो हज़ारो बार बोले हुए मन्त्र तो आपके इष्टदेव को प्रसन्न कर देते है । तथा आपकी की हुई प्राथना को सुनने पर मजबूर कर देते है.।

जैसे एक भिखारी आपसे भीख मांगता है और आप उसको मना कर दो लेकिन फिर भी भिखारी आपसे भीख मांगता ही रहे मांगता ही रहे और आपके सामने खड़ा ही रहे तो आपको मजबूर होकर उस भिखारी को भीख देनी ही पड़ती है । इसी प्रकार जब आप बार बार अपने ग्रह का या इष्टदेव का मंत्र का जाप करते हो तो मंत्रो के दबाब के कारण आपको वो इच्छा पूर्ण हो जाती है जिसका आप संकल्प करते है । इसलिए मंत्र करो खूब करो आपको लाभ जरुर मिलेगा पर समय लगेगा । लेकिन उन अज्ञानियों से जो बोलते नो मंत्र ,नो तंत्र ,नो यंत्र ऐसे मुर्ख ,पाखंडी, डोंगी और धर्म और शास्त्र विरोधी लोगो से दूर रहो ।

मंत्रो को हमेशा त्रिनेत्र से आरंभ करना चाहिए । जैसे आप शनि का मंत्र ; “ॐ शम शनैश्चराय नमः ” करना चाहते है तो सबसे पहले आपको ॐ को त्रिनेत्र पर लाना होगा । और दोनों आंखो को बंद करके ॐ को तीसरी आँख से देखे तथा जाप भी साथ साथ करे तो आपकी सभी इंद्रियाँ सिर्फ मंत्र पर केन्द्रित हो जाती है । तथा आपका ध्यान पूर्ण रूप से पूजा और मंत्र मे लग जाता है तथा भटकता नहीं है ।
ऐसा करते करते अभ्यास हो जाता है ।

पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतिषविद् एवं सनातन धर्म चिंतक )
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