ज्ञान की डगर

ज्ञान की श्रेणी में सबसे कठिन ज्ञान योग विज्ञानं होता है . यह ज्ञान शरीर के आतंरिक भाग और ब्रह्माण्ड के बाहरी भाग का समन्वय करता है . शरीर बाहरी ब्रह्माण्ड का सूक्ष्म रूप है . पहले सूक्ष्म ब्रह्माण्ड को जानना और बड़े ब्रह्माण्ड के साथ समन्वय करना बहुत कठिन तपस्या का काम है . इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए लगातार अष्टांग योग की आवश्यकता होती है . एक बार यह ज्ञान आ जाता है फिर बहुत आसन है . योग विज्ञानं के बाद आता है ज्योतिष विज्ञानं . यह ज्योतिष विज्ञानं ब्रमांड के बाहरी आवरण की जानकारी देता है . ब्रह्माण्ड में होने वाली घटनाओं के कारण मानव जीवन पर क्या प्रभाव होता है . उन घटनाओं की जानकारी ज्योतिष विज्ञानं के माध्यम से दी जा सकती है .ज्योतिष ज्ञान भी बहुत कठिन है पर योग विज्ञानं से कम है . उसके बाद आता है साधारण ज्ञान … [ Read More ]

गीता में अर्जुन ने कर्म किया था या विकर्म ये कर्म और विकर्म क्या है ?

प्रशन बहुत टेढ़ा है किसी का वध करना कर्म भी है और विकर्म भी है जबकि वध तो वध ही है आखिर गीता क्या कहती है ? गीता का ज्ञान और भगवान् के श्री मुख से निकली हुई दिव्य वाणी कहती है कि अगर आपके खिलाफ कोई कायरता का काम या षडयंत्र करे तो वो विकर्म है , लाक्षा गृह का निर्माण निश्चित तोर पर विकर्म था , द्रोपदी का चीर हरण विकर्म था , भीम को जहर देना विकर्म था , कीचक द्वारा द्रोपदी का शोषण करना विकर्म था , छल से जुआ जीतना विकर्म था , जयदरथ द्वारा द्रोपदी का हरण करने की कोशिस करना विकर्म था . इसी प्रकार किसी ज्ञानी , महान पुरुष , उपदेशक या भागवत कथाकार की पत्नी का कोई चीरहरण करे और ऐसी स्थिति में चीरहरण करने वाले का बध कर दिया जाए तो विकर्म नहीं होता है वह तो उसका कर्म है … [ Read More ]

गीता का यथार्थ सत्य कर्मफल और भाग्यफल

गीता मे भगवान श्री कृष्ण ने सिर्फ अर्जुन के विषाद मुक्ति के लिए ही कहा है कि कर्म फल की इच्छा न कर और युद्ध कर । क्योकि अर्जुन एक साधक था और योगी भी था । अर्जुन कर्मफल जानता था । इसलिए अर्जुन दुखी था । अर्जुन कर्मफल का त्याग भगवान के उपर छोड़ सकता है । लेकिन साधारण मनुष्य कर्मफल का त्याग नहीं छोड़ सकता है । प्रभु के द्वारा रचित इस संसार मे कर्म का बहुत महत्व है । कर्म करने के लिए तथा कर्म फल की इच्छा का लक्ष लेकर ही भगवान ने बार बार जन्म लिया था और लेते रहेंगे । साधारण मनुष्य तो कर्म करने के लिए पैदा होता है तथा कर्मफल भोगने के लिए बार बार जन्म लेता रहता है । अगर ऐसा न होता तो स्वयं भगवान विष्णु राक्षसो का नाश करने के देवताओ को यह न कहते कि मैं राम के … [ Read More ]

झूठ की वैसाखी पर टिका है यह संसार यथार्त और कटु सत्य

बचपन से शिक्षा दी जाती है कि सच बोलना चाहिए . सच बोलना बहुत अच्छा है . बाकई सच बोलना एक तपस्या है एक त्याग है . अगर सच बोलते हो तो आपका मनोवल बढ़ता है . सच बोलने से मनुष्य जितेन्द्रिय हो जाता है . सच बोलने से आत्मविश्वास बढ़ता है . सच बोलना अष्टांग योग का पहला नियम है . और हमें रटाया गया है कि सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप जाके ह्रदय आप है बाके ह्रदय ताप लेकिन ज्योतिष विज्ञानं कहता है कि 9 ग्रह में से ५ ग्रह पापी और क्रूर है तथा २ ग्रह बुध और चन्द्रमा आधे समय असुभ हो जाते है . इस प्रकार 9 में से ७ ग्रहों का असुभ प्रभाव पूरी मानव प्रजाति पर रहता है . इसका मतलब यह हुआ ७७/ लोग पाप और झूठ का सहारा लेते है . अगर झूठ न होता तो इस संसार का … [ Read More ]

आधुनुक युग में क्या गुरु का नाम जपने से सदोगति मिलेगी ? या कोरा पाखंड है. क्या कहता है आध्यात्मिक विज्ञानं ?

हिन्दू धर्म की बहुत बड़ी विडम्बना है कि यह धर्म डाल डाल और पात पात की तरह बट रहा है . और हिन्दू धर्म को बांटने का बहुत बड़ा कार्य ये गुरु और बाबा और डेरा बाले कर रहे है . एक बाबा फिल्म बना रहा है वो हीरो बन गया है , एक बाबा मुसलमान है वो साईं बाबा बन गया , एक बाबा साईं ने नाम पर कॉल गर्ल का धंधा करता है वो जेल में , एक बाबा बलात्कारी है वो भी जेल में है , एक बाबा सेना तैयार करता है वो भी जेल में है , एक बाबा दलाली करता है एक बाबा हवाला कारोवार का काम करता है और एक बाबा समोसे खिला रहा है .भक्तो को ये बाबा अपने नाम की माला जपने को बोलते है . गुरु गोविन्द दोउन खड़े काके लागूं पाँव बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताये . इस दोहे … [ Read More ]

आखिर ये ध्यान क्या है ? और ध्यान कैसे काम करता है ?

ध्यान विषय पर छोटे से लेकर बड़े संत, महात्मा और ज्ञानी एक ही बात बोलते रहते हे कि ध्यान करो ध्यान करो सिर्फ ध्यान करो सब ठीक हो जाएगा । और भगवान मिल जाएँगे आपको मोक्ष मिल जाएगा । यह सत्य नहीं है मित्रो । ध्यान और लक्ष्य का बहुत गहरा संबंध है । लक्ष्य के बिना ध्यान आगे नहीं बढ़ सकता है । अगर बिना लक्ष्य के ध्यान मे जाओगे तो शून्य अवस्था मे चले जाओगे । और शून्य अवस्था मे जाना तो एक प्रकार से नीद मे जाना होता है । ध्यान से पहले आपको अपने कर्म की चेतना को निश्चित करना होता है । आपको ध्यान करते समय यह तय करना है कि ध्यान मे विचार शून्य न हो जाये तथा जो आप खोज करना चाहते है उसी दिशा मे आपका ध्यान रहे । इसलिए प्रज्ञा बुद्धि , मन और व्यान प्राण को साथ लेकर सही दिशा … [ Read More ]

भगवान ने स्वयं ही गीता मे कहा है । मनुष्यानां सहस्त्रेषु कश्चिधतती सिद्धए । यततामपि सिध्यानाम कश्चिन्मां वेत्ति तत्वत :। ।

हे अर्जुन हजारों मनुष्यों मे से कोई एक ही मनुष्य मुझे प्राप्त करने की सिद्धि के लिए प्रयत्न करता है । और उन हजारो सिद्धि का प्रयत्न करने वालों मे से कोई एक सिद्ध पुरुष ही मुझे प्राप्त करता है या मुझे देख सकता है या मुझे जान सकता है या मेरे यथार्थ रूप को जान सकता है । अब कितना कठिन है भगवान के दर्शन करना । और टीवी पर रोजाना ही लोग आँख बंद के भगवान से बात करते है । और बोलते है थोड़ा सा यत्न करो भगवान मिल जाएँगे । भगवान की क्रपा हो जाएगी । कितना पाखंड का क्या घोर कलयुग आ गया है । पंडित यतेन्द्र शर्मा ( ऐ 1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81 )

ये तपस्या क्या है ? त्रिकालदर्शी कैसे बने ?

पुराने जमाने मे ऋषि मुनि तपस्या किया करते थे आखिर वो तपस्या क्या है ? तपस्या 2 प्रकार की होती है । 1- योगिक तपस्या 2- मंत्र तपस्या योगिक तपस्या से ऋषि पहले शरीर के बारे मे जानता है । फिर शरीर के अंदर मोजूद 5 इंद्रियों , 5 प्राणो , 5 महाभूत , मन और बुद्धि को पहचानता है और फिर इनको अष्टांग योग से तपाता है । जब शरीर तप जाता है तो मन बुद्धि के उपर सवार होकर लोक लोकांतर की यात्रा करता है तथा प्रभु के इस विज्ञान को जानने की कोशिस करता है । तथा मनुष्य त्रिकालदर्शी हो जाता है । इस तपस्या मे बहुत समय की आवस्यक्ता होती है तथा शरीर को बहुत कष्ट सहना पड़ता है । मंत्र तपस्या – इस तपस्या मे मनुष्य किसी भी ग्रह या देवता के मंत्र का जाप शुरू करता है तथा मंत्र का जाप त्रिनेत्र से प्रारम्भ … [ Read More ]

ये मोक्ष क्या है? मिलेगा या नहीं, मरने के बाद कहाँ जाती है आत्मा, क्या है वैज्ञानिक आधार ?

बहुत ही विचित्र बात है कि मनुष्य मरने के बाद की गति को जानना चाहता है । मोक्ष मिलेगा या नहीं । मोक्ष क्या होता है ? मरने के बाद कहाँ जाएँगे और अगला जीवन कैसा होगा ? मरने बाद स्थूल शरीर की 5 कर्मेन्द्रिओं को त्याग कर आत्मा 5 ज्ञानेन्द्रिओं 5 प्राण 5 महाभूत मन और बुद्धि 17 चीजों को साथ लेकर जब प्रथ्वी लोक को छोड़ कर आत्मलोक मे चली जाती है । और पुनर्जन्म नहीं लेती है तो उसी को मोक्ष कहते है । जैसे हमारा शरीर तीन प्रकार का होता है उसी प्रकार आत्मा भी 3 प्रकार की होती है 1-सतोगुणी 2- रजोगुणी 3- तमोगुणों । जो मनुष्य मांसाहारी, नशेड़ी शरावी होते है उनकी आत्मा को मरने बाद कभी मोक्ष नहीं मिलता है । ऐसे लोग इस प्रथ्वी लोक पर साँप, बिच्छू, कीड़े, मकोड़े, भेडिए, लक्कड्भग्गा, गिद्ध या गीदड़ का जन्म लेते है । ऐसे लोगों … [ Read More ]

जीवन क्या है ? कहाँ से आता है ? और कहाँ जाता है ?

जीवन का रहश्य जानना और समझना बहुत कठिन है। अगर आप मेरे शब्दों की गति के साथ साथ धीरे धीरे अपने मन की गति को रखोगे तो जीवन का रहश्य समझ मे आ जाएगा । भगवान ने इस श्रष्टि को 4 प्रकार की योनियों से बनाया है 1-स्थावर 2- अंडज 3- उद्विज 4-जंगम । स्थावर योनि मे पेड़ पोधे, पर्वत, जल तथा बनस्पति आते है । ये सभी गति तो करते है पर इनमे मन और आत्मा का बास नहीं होता है। इन योनियों मे सिर्फ सामान्य प्राण होता है जिसके कारण ये बड़े हो जाते है तथा गति करते है । तथा प्रथ्वी से अपना भोजन चूस कर अपना आकार बड़ा का लेते है । अंडज योनि मे वो सभी कीट पतंगे और रेगने वाले जीव आते है जो प्रथ्वी लोक मे अंडा के रूप मे पेदा होते है। उद्विज योनि मे वो सभी पक्षी आते है जो आकाश … [ Read More ]