बड़ी विचित्र बिडम्बना कि आप किसी का भला करते हो तो मनुष्य आपका बुरा क्यो करता है ? यह सदियों से हो रहा है और होता रहेगा । आज इस रहश्य को जानने की कोशिस करते है ।
इसका मुख्य कारण है मनुष्य की प्राकृतिक आगे बढ़ने की चेष्टा । यह चेष्टा ही मनुष्य को बुरा करने पर मजबूर करती है । प्रकृति का नियम है बड़ा पेड़ छोटे पेड़ को बढ़ने नेही देता है । जब बड़ा पेड़ सूख जाता है तो छोटा पेड़ बड़ा होना शुरू हो जाता है।
जब कोई शिष्य गुरु के पास शिक्षा ग्रहण करता है तो वो गुरु के सभी गुणो को लेना चाहता है । अगर गुरु कुछ ज्ञान अपने पास रिजर्व मे रख लेता है तो वही शिष्य उस गुरु का शस्त्रु बन जाता है ।
अगर आप किसी को कोई व्यापार का हुनर सिखाते हो तो वो ही आगे आपका प्रितयोगी बनेगा तथा आपके व्यापार का नाश करेगा ।
अगर आप अपने किसी रिस्तेदार को राजनीति मे लाये तो वही आपकी जड़ काटेगा जैसे साधू यादव ने लालू यादव की जड़ काटी ।
देने वाला , मदद करने वाला या सिखाने वाला या बुरे समय मे आपका साथ देने वाला तो संतोष की स्थिति मे होता है लेकिन मदद लेने वाला और सीखने वाला असंतोष की स्थिति मे होता है । चाहे मामला खेल जगत हो , गुरु शिष्य का हो , राजनीति का हो , व्यापार का हो या किसी प्रकार के धन के लेने या देने का हो या आपके द्वारा किसी की मदद का हो ।
अगर आप किसी भी ज्ञानी , विद्वान , धनवान , गरीब , रिस्तेदार , भाई बंधु या आपका शिष्य या आपका नॉकर की मदद कर रहे है तो यह सोच कर मदद करे मुझे इसके दुष्परिणाम मिलेंगे । यह सार्वभोमिक सत्य है अगर आप किसी की भी मदद कर रहे है तो आपको अपने बुरे के लिए तैयार रहना चाहिए ।
पं. यतेन्द्र शर्मा( वेदिक & आध्यात्मिक दार्शनिक )