आज के समय में स्वयं हिन्दू ही असहिष्णुता का शिकार हो रहे हैं जिसका नाम है ‘ धार्मिक असहिष्णुता ‘ । मानसिक रूप से आज के समय में ये लगभग सभी हिन्दू धर्म के अनुयायियों , मठाधीश , पुजारियो और स्वयं हिन्दू धर्म से जुड़े हुए समाज के लोगों पर पूर्ण रूप से लागू होती है जो अपने निजी फायदे के लिए रूढ़िवादी परम्पराओ का हवाला देकर स्वयं अपने ही हिंदू धर्म का नाश करने में लगे हुए हैं ।
भगवान् तो सबके हैं चाहे वो पुरुष हो अथवा स्त्री ये सभी भगवान की संतान है तो फिर सिर्फ हमारे देश के कुछ हिन्दू मंदिरों में पुरुषों के अलावा महिलाओं के प्रवेश और पूजा पर पावंदी क्यों लगाईं जाती है ?
अनादि काल से ही सृष्टि की रचना के साथ ही इतिहास गवाह है कि महिलाएं ही आज तक सबसे ज्यादा भगवान् की पूजा पाठ करती रही हैं जिसके कारण हमारा धर्म मजबूत है और जीवित है । पुरुष केवल अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए ही भगवान् को पूजते हैं जबकि महिलाये केवल अपने परिवार की मंगल कामना हेतु भगवान् की पूजा अर्चना करती है जिसका लगभग 80% फल उसके पति को भी लगता है । अब यदि ऐसे देश में महिलाओं को मंदिर में प्रवेश और पूजा करने का अधिकार नही दिया जाता है तो फिर ऐसे लोगों को भी स्त्रियों के गर्भ से जन्म लेने का भी अधिकार नही है ।
भगवान् सभी के हैं इसलिए मानसिक और धार्मिक रूप से ग्रसित असहिष्णु विचारधारा के लोगों को कोई अधिकार नही है कि वो लोक परंपरागत या रूढ़िवादी परम्पराओं का हवाला देकर स्त्रियों को भगवान् की पूजा करने से रोके यदि वो ऐसा करते हैं तो भगवान् की नजर में ये सबसे बड़ा पाप है जिसका हर्जाना भरना ही पड़ेगा । इसलिये मानसिक रूप से स्ट्रांग होकर महिलाओ के प्रति आदर भाव और सत्कार की भावना रख कर और ऐसी परपम्पराओं को तोड़कर ही हिन्दू धर्म को मजबूत किया जा सकता है ।
पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतिषविद् एवं हिन्दू सनातन धर्म चिंतक )
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