गीता मे भगवान श्री कृष्ण ने सिर्फ अर्जुन के विषाद मुक्ति के लिए ही कहा है कि कर्म फल की इच्छा न कर और युद्ध कर । क्योकि अर्जुन एक साधक था और योगी भी था । अर्जुन कर्मफल जानता था । इसलिए अर्जुन दुखी था । अर्जुन कर्मफल का त्याग भगवान के उपर छोड़ सकता है । लेकिन साधारण मनुष्य कर्मफल का त्याग नहीं छोड़ सकता है । प्रभु के द्वारा रचित इस संसार मे कर्म का बहुत महत्व है । कर्म करने के लिए तथा कर्म फल की इच्छा का लक्ष लेकर ही भगवान ने बार बार जन्म लिया था और लेते रहेंगे । साधारण मनुष्य तो कर्म करने के लिए पैदा होता है तथा कर्मफल भोगने के लिए बार बार जन्म लेता रहता है । अगर ऐसा न होता तो स्वयं भगवान विष्णु राक्षसो का नाश करने के देवताओ को यह न कहते कि मैं राम के रूप मे अवतार लूँगा । और कंस के लिए यह भविष्य वाणी न होती कि कंस तुझे मारने वाला तो जन्म ले चुका है । जीवन चक्र तो कर्म करने के लिए तथा कर्म फल की इच्छा के लिए ही लगातार चलता रहता है । और गीता मे स्वयं भगवान ने कहा है कि
न हि देहभ्रता शक्यम त्ययुकतम कर्माण्य शेषत:।
यस्तु कर्मफल त्यागी स त्यागीत्य भिधीयते । ।
भगवान स्वयं कहते है कि कर्म को त्यागना संभव नहीं है फिर वो कौन सा कर्मफल है जिसको भगवान अर्जुन को त्यागने के लिए कह रह है । वो है योग और सन्यास का कर्म फल । अर्जुन डरा हुआ था कही अपनों को मार कर मैं योग और साधना के पथ से भटक न जाऊ । इसलिए योग और सन्यास का कर्मफल फल सिर्फ भगवान के उपर निर्भर है । अगर भगवान चाहे तो योग और सन्यास का कर्मफल मिलेगा नहीं तो सन्यासी भी जीवन पर्यंत भटकता ही रहेगा । बचे हुए कर्मफल तो भाग्य पर निर्भर है जैसा आपकी कुंडली मे लिखा है वैसा कर्मफल आपको मिलेगा ।
पंडित यतेन्द्र शर्मा, कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ( ऐ1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81 )