गीता में अर्जुन ने कर्म किया था या विकर्म ये कर्म और विकर्म क्या है ?

प्रशन बहुत टेढ़ा है किसी का वध करना कर्म भी है और विकर्म भी है जबकि वध तो वध ही है आखिर गीता क्या कहती है ? गीता का ज्ञान और भगवान् के श्री मुख से निकली हुई दिव्य वाणी कहती है कि अगर आपके खिलाफ कोई कायरता का काम या षडयंत्र करे तो वो विकर्म है , लाक्षा गृह का निर्माण निश्चित तोर पर विकर्म था , द्रोपदी का चीर हरण विकर्म था , भीम को जहर देना विकर्म था , कीचक द्वारा द्रोपदी का शोषण करना विकर्म था , छल से जुआ जीतना विकर्म था , जयदरथ द्वारा द्रोपदी का हरण करने की कोशिस करना विकर्म था . इसी प्रकार किसी ज्ञानी , महान पुरुष , उपदेशक या भागवत कथाकार की पत्नी का कोई चीरहरण करे और ऐसी स्थिति में चीरहरण करने वाले का बध कर दिया जाए तो विकर्म नहीं होता है वह तो उसका कर्म है गीता का ज्ञान तो यही कहता है . अगर आप अपने स्वार्थ के लिए किसी की हत्या या वध या छल करते हो तो वो विकर्म हुआ . इसलिए अर्जुन ने इतनी सेना और योद्धाओं का वध किया था वो उसका कर्म था . अगर भीम ने बकासुर और हिदम्ब नाम के राक्षस और कीचक और जरासंध , दुर्योधन और दुसासन को मारा तो वो भीम का कर्म था . आत्मा और प्रकृति को पीड़ित करने वाला कार्य विकर्म की श्रेणी में आता है और आत्मा की शांति और संतोष तथा प्रकृति के अनुरूप किया गया कार्य कर्म की श्रेणी में आता है लेकिन कर्म और विकर्म सिर्फ भगवान् के न्यालय तक सीमित है . सरकार के कानून के हिसाव से गलत है .
पंडित यतेन्द्र शर्मा, कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ(ऐ1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81)