जीवन का रहश्य जानना और समझना बहुत कठिन है। अगर आप मेरे शब्दों की गति के साथ साथ धीरे धीरे अपने मन की गति को रखोगे तो जीवन का रहश्य समझ मे आ जाएगा । भगवान ने इस श्रष्टि को 4 प्रकार की योनियों से बनाया है 1-स्थावर 2- अंडज 3- उद्विज 4-जंगम । स्थावर योनि मे पेड़ पोधे, पर्वत, जल तथा बनस्पति आते है । ये सभी गति तो करते है पर इनमे मन और आत्मा का बास नहीं होता है। इन योनियों मे सिर्फ सामान्य प्राण होता है जिसके कारण ये बड़े हो जाते है तथा गति करते है । तथा प्रथ्वी से अपना भोजन चूस कर अपना आकार बड़ा का लेते है । अंडज योनि मे वो सभी कीट पतंगे और रेगने वाले जीव आते है जो प्रथ्वी लोक मे अंडा के रूप मे पेदा होते है। उद्विज योनि मे वो सभी पक्षी आते है जो आकाश मे उड़ते है । जंगम योनि मे मनुष्य का दुर्लभ जीवन पैदा होता है और जानवर भी पैदा होते है । जीवन एक प्रकार का बीज़ है जो कभी खत्म नहीं होता है ।
जीवन श्रष्टि की उत्पत्ति के साथ पैदा होता है और प्रलय काल मे श्रष्टि की समाप्ति के साथ समाप्त हो जाता है। जीवन कहाँ से आता है ? जैसे एक पीपल के पेड़ का बीज बहुत शूक्ष्म होता है जब वह अपना जीवन जीता है तो बहुत बड़ा हो जाता है । और जीवन जीते जीते पीपल का पेड़ इस प्रथ्वी लोक मे अपने बापिस आने का रास्ता स्वयं ही तैयार कर लेता है । वो हजारों बीज उत्पन्न करके प्रथ्वी के अंदर ही जमा कर देता है । लेकिन पीपल के पेड़ को पता ही नहीं होता है कि उसने बीज़ कहाँ जमा किये है । पर यह सार्वभोमिक सत्य है कि पीपल के बीज़ जमा हुये है। अगर जमा न होते तो दुवारा पीपल के पेड़ के जीवन की संभावना ही नहीं होती । उसी प्रकार जब हम जीवन जीते है तो इस प्रथ्वी लोक पर बापिस आने के लिए हम अपने हजारों बीज़ कर्म के माध्यम अंतिरक्ष मे जमा कर देते है। लेकिन आपको पता ही नहीं होता है कि आपने अपने बापिस आने के बीज़ कहाँ जमा किए है और कौन सी योनि मे जाने के लिए जमा किए है । जैसे एक पीपल के पेड़ के कर्म अच्छे होते है तो वो स्थावर योनि मे जन्म लेकर भी पूजा जाता है। अगर उसके कर्म अच्छे नहीं तो उसको काट कर जला लिया जाता है । इसी प्रकार मनुष्य के कर्म अच्छे है तो वो पूजा जाएगा । नहीं तो उसका जीवन भी काट कर स्थावर ,अंडज या उद्विज योनि मे भेज दिया जाएगा ।
भगवान की विधि के विधान से अगर हम अच्छे कर्म करते है तो हमे अपने जीवन मे प्रमोसन मिल जाती है और शुक्ष्म शरीर मिल जाता है । अगर बुरे कर्म करते है तो डेमोसन मिल जाती है और हम निम्न योनियों मे चले जाते है या भेज दिये जाते है । यही जीवन का चक्र है जो हमेशा चलता रहता है । इसलिए जीवन नाम के इस बीज़ को बोते समय और जवान होते समय तथा इससे कर्म करते समय याद रखकर ऐसे कर्म करो जो आपको पता हो आपको याद हो कि आपने अपने कर्म कैसे किए है और कहाँ संचित किए है। तो उसी के आधार पर आपको वैसा ही जीवन दुवारा मिलेगा ।
पंडित यतेन्द्र शर्मा (श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81)