दुख का मूल कारण क्या है ? दुख को कैसे कम करें? क्या है इसका उपाय ?

दुखो के उपाय तो सभी धर्मो मे बताए जाते है । लेकिन यह कोई नहीं बताता है कि दुख क्यो पैदा होता है ? अगर दुख को पैदा न होने दिया जाये तो यह सांसारिक जीवन सहज हो जाएगा और दुख से मुक्ति मिलेगी ।

भगवान ने इस सृष्टि को दो रूप “जड़ और चेतन “ मे बनाया है । तथा दो शब्दो मे बनाया है “ मन के शब्द और आत्मा के शब्द “ । इसलिए इस दुनिया के दो रूप और दो शब्द होते है । मनुष्य मे भो दो भाव “ इच्छा और संतोष “ रहते है । “इच्छा” हमारी 5 ज्ञानेंद्रियाँ के वशीभूत होकर उसके अधीन काम करती है । जब 5 इंद्री प्रवल होती है तो इच्छा प्रवल होती है ।

जब इच्छा प्रवल होती है तो शरीर के अंदर एक रासायनिक क्रिया उत्पन्न होती है जो शरीर मे इच्छा को बहुत तीव्र गति देती है । जब उस गति के अनुरूप इच्छा पूर्ण नहीं होती है तो यह इच्छा शरीर को दुख मे परिवर्तित कर देती है । जब यह इच्छा दुख मे परिवर्तित हो जाती है तो मनुष्य का शरीर दुख और विषाद के घेरे मे आ जाता है । और यह रासायनिक क्रिया इतनी प्रवल होती है कि शरीर इसके प्रकोप सहन नहीं पाता है और बीमार पड़ जाता है ।

अब इस दुख को कम कैसे किया जाये ?

जब इच्छा प्रकट और प्रवल होती है तो उसके वेग को कम करने की साधना और धारणा करनी चाहिए । अगर आप इच्छा की गति को कम करने मे कामयाव हो जाते है तो शरीर मे रासायनिक क्रिया कम मात्रा मे होती है । और इस क्रिया को “संतोष” नाम के शब्द के माध्यम से कम किया जा सकता है । यह शब्द आत्मा के अधीन काम करता है । और आत्मा संतोषी होती है ।
इस प्रथवि लोक पर दो प्रकार के शब्द होते है । एक बुरे शब्द जो कि मन के द्वारा संचालित रहते है और दूसरे अच्छे शब्द जो कि आत्मा के द्वारा संचालित रहते है । “संतोष” शब्द आत्मा के द्वारा संचालित होता है ।

अगर आप अपने दुख को या विषाद को कम करना चाहते हो तो आपको आत्मीय शब्दो का प्रयोग करना चाहिए । उन शब्दो की पहचान करनी चाहिए । ये शब्द ध्यान और धारणा के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते है । जितना आपके पास आत्मीय शब्दो का भंडार होगा उतना ही आपका जीवन दुख और विषाद रहित होगा ।

पं. यतेन्द्र शर्मा ( ज्योतोषविद् एवं वैदिक दार्शनिक )
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