यजुर्वेद का सार

वेदों मे सबसे वडा ऋग्वेद है । यजुर्वेद तीसरे स्थान पर आता है । यजुर्वेद की 101 शाखाओं के 2 मुख्य बर्ग है एक है शुक्ल पक्ष और दूसरा है कृष्ण पक्ष । शुक्ल पक्ष की 15 शाखाये है । यजुर्वेद मे 40 अध्याय और 1975 मंत्र है । यजुरवेद को कर्मकांड का मुख्य वेद माना गया है । यजुर्वेद मे 39 अध्याय मे पूजा के मंत्र , और यज्ञ करने के मंत्र है । अमावश्या के यज्ञ का विधान , पुर्णिमा के यज्ञ का विधान , नित्य किए जाने वाले यज्ञ का विधान , राजसूय यज्ञ , अश्वमेघ यज्ञ तथा छोटे बड़े यज्ञों का विवरण है । इसके अलावा 4 पुरुषार्थ की जानकारी भी हमे यजुर्वेद से मिलती है ।
चार पुरुषार्थ जीवन को कैसे सफल बनाते है । चार पुरुषार्थ पूर्ण करने वाला मनुष्य कैसे अपने जीवन को सफल बनाता है । चार पुरुषार्थ धर्म ,अर्थ , काम और मोक्ष के बारे मे पूरा विवरण यजुर्वेद मे मिलता है ।
ऋग्वेद के ज्ञाता विद्वान को होता कहते है । यजुर्वेद के विद्वान को अध्वर्यू , सामवेद के ज्ञाता विद्वान को उदगाता और अथर्वेद के ज्ञाता विद्वान को ब्रह्मा कहते है । वैदिक पूजा मे प्रयोग किए जाने वाले सभी मंत्र यजुरवेद के होते है । वेद मंत्रो से की गयी पूजा और यज्ञ का अवश्य ही मिलता है । जैसे ऋग्वेद हमे पूरे ब्रह्मांड और प्रकृति की वैज्ञानिक जानकारी देता है उसी प्रकार यजुर्वेद हमे आध्यात्मिक यज्ञ , हवन और पूजा पाठ की जानकारी देता है ।

पंडित यतेन्द्र शर्मा ( ऐ1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81 )