यह पुराण आकार मे बहुत छोटा है । इसमे केवल 112 अध्याय और 11000 श्लोक है । इसके चार खंड है तथा दो भागो मे पूर्व भाग और उत्तर भाग मे विभाजित है । यह पुराण कुरुक्षेत्र काल मे लिखा गया था । राजा परीक्षित की पाँचवी पीड़ी के राजा अधीसाम्क्रष्ण के राज के समय मे इस पुराण का संकलन हुआ था ।
पूर्व भाग –
पूर्व भाग मे सृष्टि का विस्तृत वर्णन है । सृष्टि भगवान शिव से अभिव्यक्त होती है । भूगोल और खगोल और इतिहास की द्र्श्ति से यह पुराण उत्तम है इसमे जम्मू दीप की विस्तृत जानकारी मिलती है । चारो वेदो और चारो आश्रमो का विस्तृत वर्णन है । यज्ञ , ऋषि तीर्थ तथा ब्रह्मणो के वंशो का वर्णन है । इस पुराण की विशेषता है कि इसमे भगवान शिव के और भगवान विष्णु के चरित्र का विस्तृत वर्णन है । इसके अलावा पशुपति की पुजा से संबन्धित पाशुपत योग का निरूपण किया गया है ।
उत्तर भाग
वायु पुराण के उत्तर भाग मे नर्मदा नदी के तीर्थों का वर्णन है । नर्मदा नदी के जल को ब्रह्मा , विष्णु और महेश माना गया है । शार्व्स्तव और दक्ष द्वारा भगवान शिव की स्तुति का वर्णन है । इसके अलावा वायु पुराण मे मधु कैटभ की कथा और मोहिनी जन्म की कथा का वर्णन भी है ।
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पं. यतेन्द्र शर्मा ( कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ )