साधू ऐसा चाहिये जैसे सूप सुहाय सार सार को गह रहे थोता दे उडाय आखिर साधू सन्यासी कैसा होना चाहिए ?

साधू का स्वाभाव सूप जैसा होना चाहिए . जिस प्रकार सूप अनाज में से थोते अनाज को उदा देता है तथा अच्छे अनाज को रख लेता है . उसी प्रकार साधू में बुराई को उड़ा देने की क्षमता होने चाहिए . साधू क्रोधी नहीं होना चाहिए , साधू को तामसिक नहीं होना चाहिए , साधू की भाषा मर्यादित होनी चाहिए , साधू का भोजन सात्विक होना चाहिए , साधू हिंसक नहीं होना चाहिए , साधू को जितेन्द्र होना चाहिए , साधू को ५ प्राण ५ उपप्राण ५ इंद्री ५ कर्मेन्द्रि ,मन और आत्मा के समन्वय का ज्ञान होना चाहिए . साधू को मन और आत्मा का योग आना चाहिए . वही साधू है . और जो साधू आधुनिक सुख सुविधाओ से सुसज्जित हो वो तो साधू हो ही नहीं हो सकता है वो तो साधू के परिवेश में एक गृहस्थी का रूप है . साधू का गहना तो उसका ज्ञान है ना कि उसका आवरण . जो मनुष्य उपर्युक्त गुणों से सम्पन हो वो गृहस्थी भी साधू के सामान है

पंडित यतेन्द्र शर्मा, कुंडली एवं वास्तु विशेष्ाज्ञ ( ऐ1 श्री बालाजी हनुमान मंदिर रामा विहार डेल्ही 81)